एस.ओ.एस. मेडिटेशन के द्वारा प्रभु की भव्यता के साथ जुड़ें

जून 21, 2020

आज संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्थापित अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की छठी वर्षगांठ थी। इस साल की विषयवस्तु थी “स्वास्थ्य के लिए योग – घर पर योग“। इस अवसर पर संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने योग के उस प्रकार के बारे में बताया जो हमारे आध्यात्मिक उत्थान और कल्याण के लिए है – सुरत शब्द योग – या एस.ओ.एस. मेडिटेशन।

हालाँकि योग के कई प्रकार हैं जो शरीर को स्वस्थ रहने में मदद करते हैं, वहीं एस.ओ.एस. मेडिटेशन हमारी आत्मा को स्वस्थ करता है। इससे हमारा आध्यात्मिक विकास होता है, और यह हमें प्रभु से जुड़ने में मदद करता है तथा हमारी आत्मा को प्रभु के पास वापस जाने वाली यात्रा पर जाने के लायक बनाता है – ताकि वो उस स्रोत के पास वापस लौट सके जहाँ से वो आई है। इस योग को सभी उम्र और पृष्ठभूमियों के लोग कर सकते हैं, इसमें किसी भी तरह के कठिन आसनों की ज़रूरत नहीं होती है, महाराज जी ने फ़र्माया।

सुरत शब्द योग का अर्थ समझाते हुए महाराज जी ने फ़र्माया कि सुरत हमारी आत्मा के बाहरी रूप, यानी ध्यान, को कहते हैं। शब्द, प्रभु की उस दिव्य धारा या सत्ता को कहते हैं जिसने इस समस्त सृष्टि की रचना की है और जो इस संपूर्ण सृष्टि में हर समय व्याप्त है। योग का अर्थ है जुड़ना, महाराज जी ने फ़र्माया। तो सुरत शब्द योग का अर्थ होता है हमारी आत्मा का प्रभु के साथ जुड़ना।

एस.ओ.एस. मेडिटेशन के नियमित अभ्यास से हमारी आत्मा प्रभु की ज्योति और श्रुति के साथ जुड़ जाती है। प्रभु कहीं बाहर नहीं हैं, बल्कि हमारे भीतर हैं, संत राजिन्दर सिंह जी ने फ़र्माया। इस मानव चोले में हमें वो सभी पदार्थ दिए गए हैं जो प्रभु को पाने के लिए हमें चाहियें। हमें केवल अपने ध्यान को बाहरी संसार से हटाकर आंतरिक रूहानी मंडलों के प्रवेशद्वार – अंदरूनी आँख – पर केंद्रित करना होता है। यहाँ से हमारी आत्मा आंतरिक आध्यात्मिक यात्रा पर चल पड़ती है। यह आंतरिक यात्रा प्रेम, प्रकाश, और आनंद से भरपूर होती है, तथा इसके अंत में हमारी आत्मा, परमात्मा में लीन हो जाती है। प्रेम की इस यात्रा से हमारा पूरा जीवन ही बदल जाता है, और हम अधिक प्रेमपूर्ण और करुणापूर्ण बन जाते हैं, तथा प्रभु की बनाई समस्त सृष्टि को अपना ही मानकर गले से लगा लेते हैं। हमारा दृष्टिकोण स्पष्ट हो जाता है और हम जीवन को सकारात्मक ढंग से देखने लगते हैं। हम अपनी आत्मा की अनंत बुद्धिमत्ता के संपर्क में आ जाते हैं, और इस सुनहरे अवसर का लाभ उठाते हुए प्रभु की भव्यता के साथ जुड़ जाते हैं और अपनी आत्मा का मिलाप परमात्मा में करवा लेते हैं।