प्रभु को पाना

आज के वेब प्रसारण में संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने परम संत कृपाल सिंह जी महाराज के जीवन और शिक्षाओं को पुष्पांजलि अर्पित की, जो 21 अगस्त 1974 को महासमाधि में लीन हो गए थे। महाराज जी ने उनके अमर संदेश “एक बनो, नेकी करो, नेक बनो” का उल्लेख करते हुए फ़र्माया कि इस कथन में चंद शब्दों में ही अध्यात्म का सार प्रस्तुत किया गया है।
यह छह शब्द हमें बताते हैं कि हम अपना जीवन कैसे जियें, ताकि हम अपने जीवन के उच्चतम उद्देश्य को पूरा करते हुए अपनी आत्मा का मिलाप परमात्मा में करवा सकें। अपने जीवन में नैतिक सद्गुणों का मज़बूत आधार बनाने से हम नेक बन पायेंगे और नेकी कर पायेंगे, महाराज जी ने समझाया। हमें अपने सद्गुणों का आधार बनाकर अपने ध्यान को प्रभु की ओर लगाना चाहिए, ताकि हम उस आंतरिक रूहानी यात्रा पर जा सकें जो हमें हमारे सच्चे घर वापस ले जाएगी। ऐसा तब होता है जब हम ध्यानाभ्यास के द्वारा अपने ध्यान को बाहरी संसार से हटाकर अंतर में एकाग्र करते हैं।
जब हमारी आत्मा इस आंतरिक यात्रा पर जाती है, तो हम प्रभु के प्रेम के आनंद का अनुभव करने लगते हैं और नियमित प्रयास के साथ अपने जीवन के उच्चतम लक्ष्य की पूर्ति की ओर कदम बढ़ाने लगते हैं – जो है अपनी आत्मा को उसके स्रोत में लीन करवाना।