प्रभु की ओर वापस जाने का मार्ग

आज संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने स्पिरिच्युअल मास्टर्स डे (आध्यात्मिक गुरु दिवस) के अवसर पर सत्संग फ़र्माया – एक ऐसा दिन जो 27 जुलाई 1980 को संत दर्शन सिंह जी महाराज द्वारा स्थापित किया गया था, उन सभी संतों और गुरुओं का सम्मान करने के लिए जो हमें प्रभु के पास वापस जाने का मार्ग दिखाने के लिए इस संसार में आए। सभी महापुरुष हमें याद दिलाने के लिए आते हैं, महाराज जी ने फ़र्माया, कि हमारे जीवन का एक उच्चतम उद्देश्य है।
आध्यात्मिक गुरु हमें बताते हैं कि हमारी आत्मा को प्रभु से, अपने स्रोत से, बिछुड़े हुए सैकड़ों युग बीत चुके हैं, और वो अपने सच्चे स्वरूप को भूल चुकी है। यह मानव चोला आत्मा को मिला अवसर है जिसमें वो अपने सच्चे स्वरूप को और परमात्मा को पहचान सकती है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए हमें इस भौतिक संसार से आगे देखना होगा जिसमें हम जी रहे हैं। जीवन के उद्देश्य को पूरा करने के लिए और स्थाई ख़ुशियों का अनुभव करने के लिए हमें जो कुछ भी चाहिए, वो सब हमारे अंदर ही मौजूद है। ध्यानाभ्यास की विधा सिखाकर, सत्गुरु हमें आंतरिक रूहानी मंडलों में जाने का तरीका सिखा देते हैं। इस अंदरूनी यात्रा पर जाने से हमारी आत्मा प्रभु के प्रेम, प्रकाश, और परमानंद का अनुभव करने लगती है। प्रभु की सत्ता के साथ जुड़ने से हमारी आत्मा पोषित होती है। हमारी आत्मा, जो मुरझाई हुई है, खिल उठती है। तब हम आत्मा के अंदरूनी ज्ञान से जुड़ जाते हैं और हमें अपने मानव अस्तित्व को लेकर सही समझ आ जाती है।
संत राजिन्दर सिंह जी ने फ़र्माया कि सही समझ से सही विचार पैदा होते हैं, जिससे फिर सही बोल और सही कार्य जन्म लेते हैं – इस तरह हम अपना जीवन उस ढंग से जी पाते हैं जैसे हमें जीना चाहिए। इस सबकी शुरुआत होती है ध्यानाभ्यास के द्वारा अपने ध्यान को प्रभु की ओर एकाग्र करने से। धीरे-धीरे, जिस प्रकार लहर समुद्र में समा जाती है, जिस प्रकार किरण वापस सूर्य में समा जाती है, हमारी आत्मा रूपी छोटी ज्योति प्रभु रूपी महाप्रकाश में समा जाती है। इससे हमारी आत्मा की अपने स्रोत से बिछुड़ने की लंबी यात्रा का अंत हो जाता है।