ध्यानाभ्यास के द्वारा प्रेम के दूत बनें

आज संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने 16वें ग्लोबल मेडिटेशन इन प्लेस कार्यक्रम की अध्यक्षता की। इस ऑनलाइन कार्यक्रम में सप्ताह दर सप्ताह दुनिया भर के हज़ारों जिज्ञासु एकत्रित होते हैं और इकट्ठे ध्यानाभ्यास करते हैं। अपने सत्संग में महाराज जी ने समझाया कि ध्यानाभ्यास किस प्रकार हमारे रिश्तों में सुधार लाता है।
सच्चे ध्यानाभ्यास, महाराज जी ने फ़र्माया, से हमारी आत्मा स्वस्थ होती है, जोकि हमारा सच्चा स्वरूप है। इस प्रक्रिया के द्वारा हमारी आत्मा प्रभु के प्रेम का अनुभव कर पाती है और प्रभु में एकमेक हो पाती है – यही वो उच्चतम उद्देश्य है जिसे पूरा करने के लिए हमें यह मानव चोला दिया गया है। ध्यानाभ्यास के कई अन्य लाभ भी हैं। ऐसा ही एक लाभ है हमारे रिश्तों पर ध्यानाभ्यास का असर। सभी रिश्ते प्रेम पर टिके होते हैं, और जब हम ध्यानाभ्यास के द्वारा प्रभु के प्रेम के साथ जुड़ जाते हैं, तो हम अपने रिश्तों में अधिक प्रेमपूर्ण और दयालु हो जाते हैं।
यह प्रेम, संत राजिन्दर सिंह जी ने फ़र्माया, दूसरों के साथ हमारी बातचीत और व्यवहार में शांति व ख़ुशी लाता है। साथ ही, जब हम ध्यानाभ्यास के द्वारा प्रभु के दिव्य प्रकाश का अनुभव करते हैं, तो हमारे अंदर एक परिवर्तन आ जाता है। हम दूसरों के साथ अपने व्यवहार में अधिक सच्चे हो जाते हैं, जिससे फिर हमारे रिश्ते अधिक मज़बूत हो जाते हैं। जब हम अंतर में प्रभु की ज्योति के साथ जुड़ जाते हैं, तो हम प्रभु की बनाई समस्त सृष्टि की एकता को भी अनुभव करने लगते हैं और सभी को अपने ही अस्तित्व का अंग मानने लगते हैं। हम अहिंसा, नम्रता और करुणा जैसे सद्गुणों को अपने अंदर धारण कर लेते हैं। हमारे बोल व कार्य ऐसे हो जाते हैं जो दूसरों के ज़ख्मों पर आरामदायक मरहम का काम करते हैं। हम प्रेम व ख़ुशी के दूत बन जाते हैं।