आत्मा की आज़ादी

अगस्त 17, 2020

शनिवार के अपने सत्संग में, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने हमारे सच्चे स्वरूप पर और इंसानी अवस्था पर प्रकाश डाला। हम सोचते हैं कि हम यह भौतिक शरीर हैं, और इसीलिए हम अपने सारे कार्य शरीर को खिलाने-पिलाने और इसका पोषण करने के लिए ही करते हैं। हम यह जानते ही नहीं हैं कि हम असल में आत्मा हैं, जो परमात्मा का अंश है और जो इस शरीर को जान दे रही है।

इस शरीर के अंदर ही आत्मा, मन, और इंद्रियाँ वास करती हैं। हमारी इंद्रियाँ, बाहरी संसार के आकर्षणों की ओर खिंचाव के ज़रिये, और हमारा मन, विचारों के ज़रिये, हमारे ध्यान को भौतिक संसार की गतिविधियों में लगाए रखते हैं। इसीलिए हमारी आत्मा, जिसे अपने स्रोत से बिछुड़े कई युग बीत चुके हैं, इस भौतिक मंडल में बँधकर रह गई है।

हमें अपनी आत्मा को इस बंधन से आज़ाद करना है, महाराज जी ने समझाया, ताकि यह आज़ाद हो सके और वापस प्रभु में एकमेक हो सके। ऐसा तब होता है जब हम ध्यानाभ्यास के द्वारा अपने ध्यान को बाहरी संसार से हटाकर अंतर में एकाग्र करते हैं। ऐसा करने से हमारी आत्मा अंतर में प्रभु के दिव्य प्रकाश के साथ जुड़ जाती है और पोषित होती है। जिस प्रकार एक बीज को अगर उपजाऊ मिट्टी, पर्याप्त पानी, सूरज की रोशनी, और हवा मिले, तो वो पोषित होकर पौधा बन जाता है, उसी प्रकार हमारी आत्मा को जब ध्यानाभ्यास के दौरान अंतर में प्रभु का प्रेम मिलता है, तो वो पोषित होती है और खिल उठती है – फिर वो आज़ाद होकर वापस अपने स्रोत में जाकर लीन हो जाती है।