आंतरिक यात्रा को मनाना

सितम्बर 19, 2020

आज संत राजिन्दर सिंह जी महाराज के सत्संग “आंतरिक यात्रा को मनाना” से लाभ उठाने के लिए विश्व भर के हज़ारों जिज्ञासु इस वेब प्रसारण से जुड़े। आज का सत्संग महाराज जी के 74वें पावन प्रकाश-दिवस के उपलक्ष्य में ख़ास तौर पर आयोजित दो-दिवसीय ऑनलाइन कार्यक्रम का पहला दिन था।

हम सभी अपने जन्मदिन, विवाह, वर्षगांठ और अन्य महत्त्वपूर्ण तिथियों की ख़ुशी मनाना चाहते हैं, महाराज जी ने फ़र्माया। इन आयोजनों से हमें उस क्षण को याद रखने में मदद मिलती है, या हम उन पलों को दोबारा जीते हैं जो हमारे लिए ढेर सारी ख़ुशियाँ लेकर आए थे। ख़ुशी के इन सांसारिक क्षणों को मनाने के साथ-साथ हमें उस आध्यात्मिक यात्रा को भी मनाना चाहिए जो हमारे लिए सदा-सदा की ख़ुशियाँ लेकर आती है। आंतरिक यात्रा में हमारी आत्मा वापस प्रभु में लीन होने के सफ़र पर चल पड़ती है।

हम सब प्रभु रूपी महासागर की बूँदें हैं, संत राजिन्दर सिंह जी ने फ़र्माया। हमारी आत्मा, जोकि परमात्मा से उत्पन्न हुई है, युगों-युगों से अपने स्रोत से बिछुड़ चुकी है। प्रभु हमसे बेहद प्रेम करते हैं और उन्होंने हमें यह मानव चोला इसीलिए दिया है ताकि हम उनके पास वापस पहुँच सकें। आंतरिक यात्रा के दौरान हम जिन आध्यात्मिक मंडलों का अनुभव करते हैं, वो चेतन हैं और प्रभु के प्रेम, प्रकाश, व आनंद से भरपूर हैं। जब हम रूहानी मंडलों में प्रवेश करते हैं, तो हम प्रभु की ज्योति और श्रुति के साथ जुड़ जाते हैं। जब ऐसा होता है, तो हम जाग उठते हैं और हमारा जीवन प्रभु के प्रेम से प्रकाशित हो जाता है।

जहाँ प्रेम होता है, वहाँ ख़ुशियाँ होती हैं। इसीलिए प्रभु के स्थाई प्रेम से जुड़ने से हम सदा-सदा की ख़ुशियों को पा लेते हैं, जिन्हें हम बाहरी संसार की किसी भी चीज़ से पा नहीं सकते हैं। तब हम भीतर से संतुष्ट हो जाते हैं, और समस्त भयों से मुक्त होकर जीवन गुज़ारते हैं। हमारी चिंताएँ ख़त्म हो जाती हैं और तमाम हलचल समाप्त हो जाती है। हमारे अंदर से द्वैत का भाव गायब हो जाता है और हम अपनी अंदरूनी एकता को स्वीकार कर लेते हैं, क्योंकि प्रेम केवल एकता ही जानता है। इस सबकी शुरुआत होती है ध्यानाभ्यास के द्वारा अपने ध्यान को अंतर में एकाग्र करने से।