ध्यानाभ्यास के द्वारा आध्यात्मिक ख़ज़ानों का अनुभव करें

आज संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने 21वें ग्लोबल मेडिटेशन इन प्लेस की अध्यक्षता की। आज के सत्संग में महाराज जी ने उन अनमोल ख़ज़ानों के बारे में बताया जो हमें इस इंसानी जन्म में मिले हैं, तथा संतों-महापुरुषों की भूमिका पर प्रकाश डाला जो हमें इन ख़ज़ानों का अनुभव करने और इनसे लाभ उठाने के लिए प्रेरित करते हैं।
हमारी आत्मा युगों-युगों से इस सृष्टि में भटक रही है, महाराज जी ने फ़र्माया। यह इंसानी जन्म हमें प्रभु द्वारा मिला एक अनमोल तोहफ़ा है, एक सुनहरा अवसर है जिसमें हमारी आत्मा अपने सच्चे स्वरूप को जान सकती है और अपने सच्चे घर वापस लौट सकती है। लेकिन इंसान की दशा कुछ ऐसी है कि वो उस उद्देश्य को भूल चुका है जिसे पूरा करने के लिए उसे इस संसार में भेजा गया है। इसके बजाय, हम बाहरी संसार के क्षणिक आकर्षणों में ही उलझकर रह जाते हैं।
भौतिक संसार में लिप्त रहकर, हम अपने अनमोल समय को केवल सांसारिक गतिविधियों में ही ज़ाया कर देते हैं और उन असीम रूहानी ख़ज़ानों से अनजान ही बने रहते हैं जो अंतर में हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। संत-महापुरुष इस संसार में आते हैं, ताकि हमें इस मानव जन्म के सच्चे उद्देश्य की याद दिला सकें। वे हमें उन रूहानी ख़ज़ानों के बारे में बताते हैं जो हमारे अंतर में मौजूद हैं।
हमें ध्यानाभ्यास की तकनीक सिखाकर, वे हमें हमारे अंतर में छुपे दिव्य ख़ज़ानों का अनुभव करने में मदद करते हैं। जब हम ध्यानाभ्यास के दौरान प्रभु की दिव्य ज्योति व श्रुति का अनुभव करते हैं, तो हम प्रभु के प्रेम में रंगे जाते हैं और हमारे अंदर अपने आप ही एक परिवर्तन आ जाता है। हम वैसा जीवन जीने लगते हैं जैसा हमें जीना चाहिए; हम प्रभु से और सभी इंसानों से प्रेम करने लगते हैं। तब धरती पर स्वर्ग बन जाता है और हम अपने जीवन के उच्चतम उद्देश्य को पूरा करने की ओर तेज़ी से कदम बढ़ाने लगते हैं, संत राजिन्दर सिंह जी ने फ़र्माया। इस सबकी शुरुआत होती है ध्यानाभ्यास के साथ।