ध्यानाभ्यास के द्वारा आंतरिक मंडलों की सुंदरता को अनुभव करें

आज के अपने वेब प्रसारण में, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने ध्यानाभ्यास के द्वारा आंतरिक रूहानी मंडलों की सुंदरता को अनुभव करने और प्रभु के प्रेम के साथ जुड़ने के बारे में बताया।
पतझड़ के मौसम में पेड़ों की पत्तियाँ हरे से नारंगी, लाल, और पीले रंगों की हो जाती हैं, तथा हम प्रकृति की सुंदरता का आनंद उठाते हैं और प्रभु की रचना पर आश्चर्यचकित हो जाते हैं। यह सुंदरता जो हम बाहरी आँखों से देखते हैं वो इस बाहरी संसार की है, जोकि आंतरिक मंडलों की सुंदरता का एक फीका प्रतिबिंब है।
आंतरिक मंडलों को हम केवल अंदरूनी आँख से ही देख सकते हैं, महाराज जी ने फ़र्माया। संत-महापुरुष हमारे अंतर मौजूद ख़ूबसूरती और परमानंद की याद दिलाने के लिए आते हैं और हमें बताते हैं कि ये सब हमारी पहुँच में हैं। वे हमें समझाते हैं कि आंतरिक संसार का अनुभव करने के लिए जो कुछ भी हमें चाहिए, वो हमारे भीतर ही है।
धातुओं की खोज से बहुत पहले, उत्तरी अमेरिका के निवासी केवल आग और पत्थरों के प्राकृतिक संसाधनों की मदद से पेड़ों को, एक-एक परत करके, काटते थे। इसी प्रकार, हमें भी ख़ुद को मिले साधनों का प्रयोग करते हुए, एक-एक कदम करके अंदरूनी यात्रा पर तरक्की करनी होगी।
आध्यात्मिक मार्ग पर हमारा साधन है ध्यानाभ्यास, संत राजिन्दर सिंह जी ने फ़र्माया। अपने शरीर और मन को स्थिर करने, अपने ध्यान को अंतर में एकाग्र करने, और सिमरन करने, की तकनीक के द्वारा हम आंतरिक यात्रा पर जा सकते हैं तथा प्रभु के दिव्य प्रकाश का अनुभव कर सकते हैं। इस दिव्य प्रकाश के साथ जुड़ने से हम शांति, आनंद, प्रेम, और ख़ुशियों से भरपूर हो जाते हैं। इससे हमारी आत्मा का पोषण होता है, जिसे अपने स्रोत से बिछुड़े करोड़ों साल हो चुके हैं। जब हम प्रभु के साथ अपनी करीबी का अनुभव कर लेते हैं और प्रभु के अनंत प्रेम से भरपूर हो जाते हैं, तो हम स्थाई ख़ुशियाँ पा लेते हैं।