ध्यानाभ्यास के द्वारा प्रभु की रोशनी में नहायें

आज जबकि विश्व में कई स्थानों पर दीवाली मनाई जा रही है, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने दीवाली के आध्यात्मिक महत्व पर सत्संग फ़र्माया और इस बात पर रोशनी डाली कि हम अपने जीवन में कैसे रोज़ाना दीवाली मना सकते हैं।
पारंपरिक रूप से दीवाली मोमबत्तियाँ जलाकर और पटाखे बजाकर मनाई जाती है, जो बाहरी अंधकार को मिटा देते हैं। यह प्रभु की उस ज्योति का प्रतीक है जो हम में से हरेक के भीतर मौजूद है, महाराज जी ने फ़र्माया। हमारे अंदर रूहानियत के असीम ख़ज़ाने हैं। जब हम ध्यानाभ्यास की प्रक्रिया के द्वारा अंतर में एकाग्र होते हैं, तो हम इन ख़ज़ानों को पा सकते हैं। ऐसा करने से हम बाहरी हलचलों और सांसारिक उतार-चढ़ाव के काले बादलों से बाहर निकल जायेंगे और प्रभु के प्रेम, प्रकाश, सुंदरता, और आनंद की सुनहरी धूप में प्रवेश कर जायेंगे।
संत राजिन्दर सिंह जी ने फ़र्माया कि हम अपने अंदर की दिव्यता से हर रोज़, दिन या रात में किसी भी समय, जुड़ सकते हैं और प्रभु के प्रेम का अनुभव कर सकते हैं। तब हमारा जीवन एक लगातार रहने वाली दीवाली बन जाता है। हमारी सुबहें प्रभु के प्रेम की खुश्बू से भरपूर हो जाती हैं और हमारी शामें प्रभु के प्रकाश में नहा जाती हैं। तब हमारे अंदर एक बदलाव आ जाता है जिसमें निराशा की जगह आशा, नकारात्मकता की जगह सकारात्मकता, भय की जगह विश्वास, और अंधकार की जगह प्रकाश आ जाता है। यही दीवाली का सच्चा संदेश है।