दूसरों की सहायता के लिए स्वयं को अर्पित करना

नवम्बर 15, 2020

आज संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने 28वें ग्लोबल मेडिटेशन इन प्लेस ऑनलाइन कार्यक्रम की अध्यक्षता की। महाराज जी ने निष्काम सेवा के सच्चे अर्थ के बारे में बताया और समझाया कि हम इसे सही ढंग से अपने जीवन में कैसे ढाल सकते हैं।

निष्काम सेवा करने का अर्थ है बिना किसी ईनाम की अपेक्षा के दूसरों की सहायता करना। सेवा की जाती है किसी व्यक्ति या समूह को मुश्किल स्थिति से निकालने के लिए या किसी के बोझ को कम करने के लिए। पूर्वी देशों में इसे सेवा कहा जाता है। निष्काम सेवा प्रभु द्वारा दिया गया एक अवसर है, ताकि प्रभु हमें माध्यम बनाकर ज़रूरतमंदों की सहायता कर सकें।

सहायता हम नहीं, बल्कि प्रभु करते हैं। सहायता करने का अवसर प्रभु की ओर से मिला बहुत बड़ा वरदान है। निष्काम सेवा यह जानने का भी अवसर है कि हम सब एक ही हैं, और इससे हमारा अहंकार कम होने में मदद मिलती है।

सेवा, नम्रता के साथ की जानी चाहिए, महाराज जी ने समझाया, और हमें इस सिद्धांत को जीवन में अपनाना चाहिए – “दूसरों के साथ वैसा ही करो जैसा तुम चाहते हो वो तुम्हारे साथ करें”। आख़िरकार हम अपने ही भाइयों-बहनों की सेवा ही तो कर रहे हैं। हम कितना करते हैं, यह ज़रूरी नहीं है, बल्कि हमारे पास क्या है यह देखते हुए हम कितना करते हैं, यह ज़रूरी है। यह ज़रूरी नहीं है कि हम कितना देते हैं, बल्कि ज़रूरी यह है कि हम अपने आप को कितना देते हैं। जो कुछ भी हमारे पास है, वो प्रभु का दिया हुआ ही है, और निष्काम सेवा का अर्थ है अपने दिल को बड़ा करना, और दूसरों की मदद करने के इरादे से अपनी दौलत को दूसरों के साथ बाँटना। इस हृदयस्पर्शी संदेश के बाद महाराज जी ने श्रोताओं को ध्यान में बैठा दिया।