इच्छारहित होना

आज के अपने वेब प्रसारण में, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने बताया कि इच्छाएँ हमारी आध्यात्मिक तरक्की में बाधा डाल सकती हैं, तथाआध्यात्मिक मार्ग पर प्रगति करने के लिए इच्छाओं पर काबू पाना बहुत महत्त्वपूर्ण है। हम चाहे कहीं भी पैदा हुए हों, लेकिन हम सबका उद्देश्य एक ही है, जो है अपने सच्चे आत्मिक स्वरूप को जानना और प्रभु को पाना।
हमें वो सब कुछ दिया गया है जो इस महान उद्देश्य को पूरा करने के लिए हमें चाहिए। इसीलिए हमें अपना समय उन गतिविधियों में बिताना चाहिए जो हमें प्रभु की ओर ले जायें । लेकिन, इस उद्देश्य से अनजान रहते हुए, हम पूरा जीवन बाहरी संसार में ही केंद्रित रहते हैं, और ख़ुशियाँ पाने के लिए दुनियावी दौलत इकट्ठी करते रहते हैं।
समय के साथ-साथ हमें एहसास हो जाता है कि हमारे पास मौजूद सांसारिक चीज़ें अस्थाई हैं, और कभी भी हमसे छिन सकती हैं या नष्ट हो सकती हैं। अपनी इच्छाओं को पूरा करने से हमें स्थाई ख़ुशियाँ कभी भी नहीं मिल सकती हैं। हम केवल बाहरी चीज़ें एकत्रित करते जाते हैं तथा अपने भीतर मौजूद असली खज़ानों से अनजान ही बने रहते हैं, संत राजिन्दर सिंह जी ने फ़र्माया। इन खज़ानों को पाने के लिए हमें इच्छारहित होना होगा, और अपने ध्यान को बाहरी संसार से हटाकर अंतर में एकाग्र करना होगा। ऐसा तब होता है जब हम ध्यानाभ्यास करते हैं।
जब हम एक आध्यात्मिक सत्गुरु की मदद व मार्गदर्शन पाकर ध्यानाभ्यास करते हैं, तो हमारी आत्मा आंतरिक रूहानी मंडलों की यात्रा पर जा पाती है और प्रभु के प्रेम व प्रकाश का अनुभव कर पाती है – जोकि असली खज़ाने हैं।
जब हमारी आत्मा प्रभु के प्रकाश के साथ जुड़ जाती है, तो वो जागृत हो जाती है। जब हम इन दिव्य खज़ानों का अनुभव करते हैं, तब हम अपने आप ही बाहरी दौलतऔर चीज़ों को पाने की इच्छा त्याग देते हैं। हमारा ध्यान पूरी तरह से अपने लक्ष्य पर केंद्रित हो जाता है और हम प्रभु को पाने की दिशा में तेज़ी से कदम बढ़ाने लगते हैं।