सबसे बड़ा उपहार

आज संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने हमें मिले सबसे बड़े उपहार – इंसानी जन्म के उपहार – पर सत्संग फ़र्माया। इस चोले में हमें मिला समय प्रभु की ओर से एक उपहार है ताकि हम स्वयं को आत्मा के स्तर पर अनुभव कर सकें। अपनी आत्मा का अनुभव करने के बाद हम प्रभु के साथ एकमेक हो सकते हैं। हम स्वयं को जिस प्रक्रिया के द्वारा अनुभव कर सकते हैं, वो है ध्यानाभ्यास।
ध्यानाभ्यास में हम अपने ध्यान को बाहरी संसार से हटाकर अंतर में एकाग्र करते हैं। जब हम अंतर में यात्रा करते हैं, तो हम अपने असली स्वरूप को जान जाते हैं; हमारा दृष्टिकोण बदल जाता है और हम प्रभु के साथ, और प्रभु की बनाई संपूर्ण सृष्टि के साथ, अपनी एकता को पहचानने लगते हैं। संत राजिन्दर सिंह जी ने फ़र्माया कि हम जान जाते हैं कि हम चेतन स्वरूप हैं। इसी को संतों-महापुरुषों ने आत्म-जागृति कहा है।
हम यहाँ एक सीमित समय के लिए ही आए हैं, और यह ज़रूरी है कि हम ध्यानाभ्यास में समय बितायें ताकि हम इस मानव चोले के परम उद्देश्य को पूरा कर सकें।