प्रभु को पाने का मार्ग

फ़रवरी 20, 2021

आज संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने प्रभु की ओर जाने वाले मार्ग के बारे में समझाया। महाराज जी ने समझाया कि जब जीवन में किसी मोड़ पर हम प्रभु को पाने की तड़प का अनुभव करते हैं, तब भी हम बाहरी संसार में ही प्रभु की तलाश करते रहते हैं, क्योंकि हम केवल इस भौतिक संसार के बारे में ही जानते हैं। लेकिन प्रभु हमसे दूर नहीं हैं। प्रभु हमारे भीतर ही निवास करते हैं। इस मानव चोले में हमें वो सभी पदार्थ दिए गए हैं जो प्रभु को पाने के लिए हमें चाहियें।

हमें सबसे पहले इस सही समझ का विकास करना होगा कि हम कौन हैं और प्रभु के साथ हमारा क्या रिश्ता-नाता है। यह सही समझ तब आती है जब एक पूर्ण सत्गुरु के मार्गदर्शन में हम जान जाते हैं कि हमारा सच्चा स्वरूप यह शरीर, या मन, या बुद्धि नहीं है। हमारा सच्चा स्वरूप आत्मा है, जोकि परमात्मा का अंश है और चेतन है। महाराज जी ने फ़र्माया कि आत्मा, परमात्मा रूपी महासागर की एक बूंद है, और जिस तरह रेत के एक कण में पूरा रेगिस्तान छिपा होता है, उसी तरह हमारी आत्मा रूपी बूंद में परमात्मा रूपी महासागर की सभी विशेषताएँ मौजूद हैं।

जब हम स्वयं को आत्मा के रूप में अनुभव कर लेते हैं और यह जान जाते हैं कि हम युगों-युगों से परमात्मा से बिछुड़े हुए हैं, तब हमारा लक्ष्य और उस तक पहुँचने वाला मार्ग हमारे सामने साफ़ हो जाता है। अपने आपको आत्मा के रूप में अनुभव करने के लिए हमें अपना ध्यान अपनी अंदरूनी आँख पर केंद्रित करना होगा, जोकि रूहानी मंडलों में जाने का प्रवेशद्वार है। अपने ध्यान को बाहरी संसार से हटाकर अंदरूनी आँख पर केंद्रित करने की विधि को ही ध्यानाभ्यास कहते हैं। संत राजिन्दर सिंह जी ने फ़र्माया कि जब हम अपने ध्यान की धारा को अंदरूनी आँख पर एकाग्र करते हैं, तथा अपने शरीर व मन को शांत करते हैं, तो हमारी आत्मा आंतरिक रूहानी मंडलों में उड़ान भरने लगती है। वहाँ हमारी आत्मा प्रभु की दिव्य ज्योति व प्रेम के संपर्क में आ जाती है। इस यात्रा का अंत होता है अपने जीवन के उच्चतम लक्ष्य को प्राप्त करने से।