प्रभु का अनुभव करने के लिए अंतर्दृष्टि का विकास करें

आज संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने इस बात पर रोशनी डाली कि हम कैसे स्वयं प्रभु का अनुभव कर सकते हैं।
देखने की इंद्री हमारी सबसे शक्तिशाली इंद्री है, और हम अपनी आँखों का प्रयोग कर ही अपने आसपास के संसार को देखते और समझते हैं। अगर हम जीवन के किसी मोड़ पर प्रभु को पाने की कोशिश करते हैं, तब भी हम अपनी देखने की इंद्री पर ही निर्भर करते हैं। हम बाहरी दुनिया में ही प्रभु की तलाश करते रहते हैं, कभी पहाड़ों में, तो कभी जंगलों या रेगिस्तानों में, इस उम्मीद में कि हम कहीं न कहीं तो प्रभु को “देख” पायेंगे। लेकिन हम अपनी तलाश में नाकाम ही रहते हैं क्योंकि प्रभु कहीं बाहर नहीं हैं, महाराज जी ने फ़र्माया। प्रभु का निवास तो हमारे भीतर ही है। इसीलिए हम प्रभु को बाहरी आँखों से नहीं देख सकते हैं। अगर हमें प्रभु का अनुभव करना है, तो हमें अपनी अंदरूनी या आध्यात्मिक आँख से देखना होगा, जो प्रभु ने हरेक इंसान को दी है।
जब ध्यानाभ्यास के द्वारा हम अपने ध्यान को बाहरी संसार से हटाकर अपनी अंदरूनी आँख पर केंद्रित करते हैं, तो हम रूहानी मंडलों का अनुभव करने लगते हैं। ये मंडल प्रभु के प्रकाश और चेतनता से भरपूर हैं। जब हमारी आत्मा आंतरिक यात्रा पर जाती है, तो वो लगातार बढ़ते हुए प्रेम, प्रकाश, और आनंद का अनुभव करने लगती है। प्रभु की आंतरिक ज्योति के साथ जुड़ने से हमारी आत्मा अपने मौलिक सुंदर व प्रकाशमान रूप में आ जाती है। धीरे-धीरे हमारी आत्मा अपने स्रोत परमात्मा में जाकर लीन हो जाती है। आत्मा रूपी छोटी सी लौ प्रभु रूपी विशाल प्रकाश में समा जाती है। तब हम उस उद्देश्य को पूरा कर लेते हैं जिसके लिए हमें यह मानव चोला दिया गया था।