ध्यानाभ्यास के द्वारा एक चेतन जीवन में जागृत हो उठें

फ़रवरी 13, 2021

आज वैश्विक ऑनलाइन श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने समझाया कि कैसे हम प्रभु के प्रेम की सुंदरता के प्रति जागृत हो सकते हैं और हर समय इस प्रेम के साथ जुड़े रहकर जीवन की यात्रा पूरी कर सकते हैं। जीवन में चुनौतियों और मुश्किलों का सामना होने पर हम अक्सर ख़ुद को अकेला समझने लगते हैं। लेकिन हम भूल जाते हैं कि प्रभु का सहारा और संरक्षण हर समय हमारे साथ रहता है।

हम इस सच्चाई को भूल चुके हैं क्योंकि हम भौतिक इंद्रियों के द्वारा प्रभु का अनुभव नहीं कर पाते हैं। लेकिन जिस तरह आकाश में बादल होने का मतलब यह नहीं होता कि सूरज आसमान में बादलों के ऊपर चमक नहीं रहा है, उसी तरह भौतिक इंद्रियों के द्वारा प्रभु को अनुभव न कर पाने का मतलब यह नहीं है कि प्रभु हैं नहीं। हम प्रभु का अनुभव नहीं कर पाते हैं क्योंकि हमारा ध्यान बाहरी संसार में ही लगा रहता है, जोकि भ्रम की दुनिया है, और जहाँ जो मौजूद है, वो सच नहीं है और जो सच है, वो मौजूद नहीं है।

प्रभु का अनुभव करने के लिए, महाराज जी ने समझाया, हमें अपने ध्यान को आंतरिक रूहानी मंडलों में एकाग्र करना होगा जहाँ प्रभु निवास करते हैं। जब हम ऐसा करते हैं, तो हम अचेतनता के जीवन से जाग उठते हैं, जिसमें हम केवल ख़ुद को शरीर, मन, और बुद्धि ही समझते हैं, और अपने सच्चे आत्मिक स्वरूप को जान जाते हैं, जोकि परमात्मा का अंश है। तब हम प्रभु के प्रेम की सुंदरता के प्रति जागृत हो उठते हैं जो रूहानी मंडलों में व्याप्त है, और हम प्रभु के प्रकाश व प्रेम से भरपूर हो जाते हैं।

इस प्रकाश के साथ ही समस्त अंधकार दूर हो जाता है। हम अपने मानव जीवन के बारे में सही समझ को पा जाते हैं, जिससे फिर हमारे विचार, शब्द, और कार्य भी सही हो जाते हैं, तथा हम अच्छे व सच्चे इंसान बन जाते हैं। प्रभु के प्रेम का अनुभव कर लेने से हम इस प्रेम में टिके रहकर ही जीवन गुज़ारने लगते हैं और यह जान जाते हैं कि हम कभी भी अकेले नहीं होते हैं। हम सबके अंदर प्रभु का प्रकाश देखने लगते हैं और अपने सभी मिलने वालों में प्रभु का प्रकाश फैलाने लगते हैं, तथा सबकी सेवा व सहायता करने लगते हैं। प्रकृति के नियम के अनुसार, जितना अधिक हम दूसरों की सहायता करते जाते हैं, उतना ही प्रभु हम पर अधिक दया करते जाते हैं, और प्रभु-प्राप्ति के मार्ग पर हमारी तरक्की तेज़ी से होती चली जाती है।