मन को प्रभु में टिकायें

आज संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने मन को प्रभु में टिकाने के महत्त्व के बारे में समझाया, ताकि हम सदा-सदा की ख़ुशियाँ पा सकें। हर दिन हमारे सामने कोई न कोई नई चुनौती ले आता है, महाराज जी ने फ़र्माया। ये चुनौतियाँ, चाहे शारीरिक हों, या मानसिक, या भावनात्मक, या किसी और प्रकार की, हमारे जीवन में हलचल ले आती हैं और हमारी स्थिर रहने की शक्ति को प्रभावित करती हैं। इससे हमारे ध्यानाभ्यास और आध्यात्मिक प्रगति पर नकारात्मक असर पड़ता है।
एक रोचक कहानी की मदद से महाराज जी ने समझाया कि जीवन के लगातार बदलते हुए दृश्यों के बीच हमें स्थिर ज़मीन ढूंढने की आवश्यकता है। समुद्र में पैबस्त पत्थर बदलते हुए मौसमों के बीच भी हमेशा स्थिर रहता है, क्योंकि वो समुद्र की गहराई में धँसा हुआ होता है। इसी तरह, अगर हमें जीवन के तूफ़ानों के बीच भी स्थिर और शांत बने रहना है, तो हमें किसी ऐसी चीज़ के साथ जुड़ जाना चाहिए जो स्थिर और अविनाशी हो, और वो है परमात्मा। प्रभु सृष्टि की शुरुआत में थे, आज हैं, और सृष्टि के अंत तक रहेंगे।
इस वक़्त हमारा मन बाहरी संसार में धँसा हुआ है, और इसी कारण हम बाहरी दुनिया की घटनाओं से इतना अधिक प्रभावित हो जाते हैं। हमें अपने मन को प्रभु में टिकाना चाहिए। जब हमारा मन ध्यानाभ्यास में प्रभु की ओर एकाग्र होता है, तो वो स्थिर हो जाता है। शरीर और मन की इस स्थिरता में हमारी आत्मा उड़ान भरने लगती है। इस टिकाव की स्थिति में रूहानी मंडल और दिव्य नज़ारे हमारे सामने खुलने शुरू हो जाते हैं।
संत राजिन्दर सिंह जी ने फ़र्माया कि जिस तरह हम टेलीविज़न पर कई अलग-अलग चैनल देख सकते हैं, उसी तरह हम भी ध्यानाभ्यास के द्वारा प्रभु के चैनल को देख सकते हैं और अंतर के ख़ूबसूरत नज़ारों व ध्वनियों का आनंद उठा सकते हैं। ध्यानाभ्यास में सफलता की कुंजी है हमेशा अपने मन को प्रभु में टिकाए रखना। ऐसा करने से हम उन सभी ख़ुशियों का अनुभव कर सकते हैं जो प्रभु ने हम में से हरेक के लिए सुरक्षित कर रखी हैं।