ध्यानाभ्यास की दवा से आत्मा को निरोग रखें

मार्च 13, 2021

आज संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने समझाया कि किस प्रकार ध्यानाभ्यास हमें प्रभु की नज़दीकी पाने में मददगार साबित होता है। हम सब चाहते हैं कि हमारा जीवन उससे बेहतर हो जैसा इस समय है, और जब हम सोचते हैं कि हम अपने जीवन को बेहतर कैसे बना सकते हैं, तो हमारा ध्यान अपने अस्तित्व के आर्थिक, शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक पहलुओं की ओर जाता है। ख़ुद को केवल शरीर, मन, और भावनाएँ ही समझते हुए, हम सोचते हैं कि हमें जो कुछ भी चाहिए, वो हमें बाहरी संसार से मिल सकता है।

संत-महापुरुष हमें बताते हैं कि हम असल में आत्मा हैं। यह शरीर हमारी आत्मा द्वारा धरती पर ख़ुद को मिले सीमित समय के लिए किराए पर लिया गया है। हमारी आत्मा, प्रभु का अंश होने के नाते, चेतन और अविनाशी है। लेकिन हम अपना सारा जीवन बाहरी संसार की गतिविधियों में लिप्त रहकर ही बिता देते हैं और हमारी आत्मा मन, माया, व भ्रम की पर्तों के नीचे दबी रहकर कमज़ोर होती जाती है।

संत राजिन्दर सिंह जी ने समझाया कि जब हम किसी रोग की दवा लेते हैं, तो उस दवा का इस्तेमाल करने से ही हम ठीक हो पाते हैं। इसी प्रकार, आध्यात्मिक मार्ग पर संत-महापुरुष हमें बार-बार समझाते हैं कि अगर हम स्थाई ख़ुशी और शांति का अनुभव करना चाहते हैं तो हमें कैसा जीवन जीना होगा। हमें ख़ुद को मिले पदार्थों का प्रयोग कर अपने सच्चे आत्मिक स्वरूप को जानना होगा और प्रभु को पाना होगा।

जब हम ध्यानाभ्यास के द्वारा अंतर में एकाग्र होते हैं, तो हम प्रभु के प्रेम के साथ जुड़ जाते हैं। इस संपर्क से हमारी आत्मा पोषित और निरोग होती है, और हमारी आत्मा पर पड़ी मन, माया, और भ्रम की पर्तें उतरनी शुरू हो जाती हैं। ध्यानाभ्यास के द्वारा हमें मिले उच्च दृष्टिकोण से हम बाहरी संसार की समस्याओं का सामना शांति के साथ कर पाते हैं।