दूसरों की निष्काम सेवा करें

आज 43वें ग्लोबल मेडिटेशन इन प्लेस के अवसर पर विशाल ऑनलाइन समुदाय को सम्बोधित करते हुए संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने आध्यात्मिक मार्ग के एक प्रमुख सिद्धांत के बारे में समझाया – निष्काम सेवा। यह फ़र्माते हुए कि महामारी को पूरे विश्व में फैले हुए लगभग एक साल हो गया है, महाराज जी ने हर जगह के उन आपातकाल-कर्मियों के अथक और साहसी प्रयासों की भूरि-भूरि सहराना की जिन्होंने अपने जीवन को ख़तरे में डालकर वायरस से ग्रस्त लोगों की सेवा व सहायता की। कई अन्य लोगों ने इस कठिन समय में दूसरों द्वारा झेली जा रही मुसीबतों को कम करने और उनके बोझ को हल्का करने का प्रयास किया। इन सबने ज़रूरत के समय लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए निस्वार्थ रूप से सेवा की।
महाराज जी ने समझाया कि जब हम निष्काम सेवा करते हैं, तो वो हम किसी तरह का ईनाम या प्रशंसा पाने की इच्छा के बग़ैर करते हैं। हमारे अंदर यह इच्छा उत्पन्न होती है कि हम किसी के जीवन को बेहतर बनायें। इसके पीछे हमारी भावना तारीफ़ें बटोरने की नहीं होती है। अगर हम अपनी सहायता के बदले नाम या प्रतिष्ठा पाना चाहते हैं, तो वो सेवा निष्काम नहीं होती है।
हम इंसानों को इस धरती पर इसीलिए भेजा गया है ताकि हम एक-दूसरे की मदद कर सकें। हम सबका उद्देश्य भी एक ही है – स्वयं को जानना और प्रभु को पाना। हमें एक-दूसरे की सहायता करनी चाहिए और मिल-जुलकर इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कदम बढ़ाने चाहियें। हमारे जीवन जीने के तरीके में यह फ़र्क तभी आएगा जब हम दूसरों के साथ अपने संबंध का स्वयं अनुभव कर लेंगे। जब ध्यानाभ्यास के द्वारा हम ख़ुद को आत्मा के रूप में जान जाते हैं, तो हम प्रभु के साथ अपने रिश्ते का भी अनुभव कर लेते हैं और अपने जीवन में प्रभु की उपस्थिति को महसूस करने लगते हैं। इसी के साथ हम यह भी जान जाते हैं कि प्रभु दूसरों के अंदर भी मौजूद हैं, और यह कि हम सब प्रभु के प्रेम के द्वारा एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं। तब हम दूसरों के प्रति अपना दिल खोल लेते हैं और निष्काम भाव से सबकी सेवा-सहायता करने लगते हैं।