आंतरिक वसंत का अनुभव करें

आज के अपने ऑनलाइन प्रसारण में, उत्तरी गोलार्द्ध में वसंत ऋतु के पहले दिन, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने अंतर में एकाग्र होने की आवश्यकता के बारे में बताया, ताकि हमारी आत्मा आंतरिक वसंत का अनुभव कर सके। वसंत के समय प्रकृति अपनी नींद से जाग उठती है और हम उसे उसकी पूर्ण सुंदरता में देख पाते हैं, महाराज जी ने फ़र्माया।
महकते हुए फूलों और उगते हुए बीजों के बीच, वसंत का समय सभी के लिए ख़ुशियों और आनंद से भरपूर होता है। लेकिन यह हमारी आत्मा की अवस्था के बिल्कुल विपरीत है, जोकि इस समय सूखी और बंजर हुई पड़ी है। अपने स्रोत से करोड़ों सालों से बिछुड़े होने के कारण, आत्मा वापस परमात्मा में लीन होने के लिए तड़प रही है, महाराज जी ने समझाया। जिस उद्देश्य के लिए हम इस धरती पर आए हैं, उसे पूरा करने के लिए हमें आंतरिक वसंत का अनुभव करने की आवश्यकता है – जबकि हमारी आत्मा अपनी गहरी नींद से जाग उठे और प्रभु के संपर्क में आकर पोषित व तरोताज़ा हो उठे।
ऐसा हम कर सकते हैं ध्यानाभ्यास के द्वारा अपने ध्यान को बाहर से हटाकर अंतर में एकाग्र करने से। अंतर में प्रभु के प्रेम का अनुभव करने से हमारी आत्मा पोषित होती है व खिल उठती है, और हम उसे उसकी संपूर्ण शोभा में देख पाते हैं। अपनी इस यात्रा में, हमारी आत्मा ऐसे दृश्यों, ध्वनियों, और परमानंद का अनुभव करती है जिसकी तुलना कोई भी बाहरी वसंत नही कर सकता है। हम बाहरी वसंत की क्षणिक ख़ुशियों से ऊपर उठ जाते हैं और अंतर में सदा-सदा रहने वाले वसंत का आनंद लेने लगते हैं।
संत राजिन्दर सिंह जी ने समझाया कि आंतरिक वसंत का अनुभव करने के लिए हमें ध्यानाभ्यास की प्रक्रिया द्वारा अपने शरीर व मन को शांत करना होगा, तथा अंतर में एकाग्र होना होगा। हमें रोज़ाना नियमित रूप से ध्यानाभ्यास करना चाहिए, ताकि हम प्रभु के प्रेम का अनुभव कर सकें, और इसी मानव चोले में रहते हुए प्रभु को पाने की दिशा में तरक्की करते चले जायें।