प्रभु की सृष्टि की सम्पूर्णता को गले लगायें

आज संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने समझाया कि हम कैसे प्रभु की सृष्टि की सम्पूर्णता को देखना और गले लगाना सीख सकते हैं। जब हम दूसरों के साथ मिलते-जुलते और बातचीत करते हैं, तो यह इंसानी स्वभाव है कि हम अपनी ज़रूरतों और अपेक्षाओं के मुताबिक दूसरों को बदलना या सुधारना चाहते हैं। यह हमारे मन की प्रवृत्ति होती है, क्योंकि वो हमेशा दूसरों में कमियाँ ढूँढता रहता है, जिससे हमारे जीवन में मुश्किलें और हलचल आ जाती है।
उस स्थिति में पहुँचने के लिए जहाँ हम सबको उसी रूप में गले लगायें जैसे कि वो हैं, हमें एक-दूसरे को वैसे देखना होगा जैसे प्रभु हमें देखते हैं। प्रभु की नज़रों में हम सब सम्पूर्ण हैं। जैसे हम सूर्यास्त की सुंदरता का आनंद लेते हैं और यह नहीं सोचते कि हमें उसके रंगों को कैसे बदलना है, वैसे ही हमें प्रभु की बनाई समस्त सृष्टि की ख़ूबसूरती और सम्पूर्णता का आनंद लेना चाहिए। ऐसा तभी हो सकता है जब हम अपना दृष्टिकोण बदलेंगे, और जब हम हर चीज़ में व हर इंसान में प्रभु की उपस्थिति को देखने लगेंगे।
जीवन को इस उच्च दृष्टिकोण से देखने के लिए, हमें ध्यानाभ्यास करना होगा। जब हम अपना ध्यान बाहरी दुनिया से हटाकर अंतर में एकाग्र करते हैं, तो हम अपने भीतर मौजूद प्रभु की ज्योति के साथ जुड़ जाते हैं। तब हम ख़ुद को शरीर और मन नहीं, बल्कि आत्मा समझने लगते हैं। जब हम धीरे-धीरे शारीरिक चेतनता से ऊपर उठकर प्रभु का अनुभव करने लगते हैं, तो हम यह भी अनुभव करने लगते हैं कि प्रभु अन्य सभी लोगों में भी मौजूद हैं। तब हमें दूसरों में कमियाँ नज़र आनी बंद हो जाती हैं, और हम सबको प्रभु का रूप ही मानकर सम्पूर्ण समझने लगते हैं।