प्रभु-प्राप्ति के मार्ग पर धैर्य

आज संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने हमें प्रभु-प्राप्ति के मार्ग पर धैर्य व सहनशीलता रखने के महत्त्व की याद दिलाई। हमारे जीवन का एक परम उद्देश्य है, महाराज जी ने समझाया। हम यहाँ ख़ुद को आत्मा के रूप में जानने के लिए और प्रभु के पास वापस जाने के लिए आए हैं। हम प्रभु की ओर कदम उठा सकते हैं जब हम ध्यानाभ्यास में बैठें और अपने अंतर के रूहानी ख़ज़ानों का अनुभव करें। आध्यात्मिक मार्ग पर तरक्की करने के लिए हमें अपना ध्यान प्रभु की ओर लगाए रखना होगा, चाहे मन हमें भटकाने की कितनी ही कोशिश क्यों न करे।
मन हमारे अंदर भौतिक संसार की इच्छाएँ पैदा करता रहा है जो हमें अपने मार्ग से भटका देती हैं, ताकि हम उस सत्य तक न पहुँच पायें जो हमारे अंदर दबा पड़ा है। यह हम पर है कि हम दृढ़ बने रहें, महाराज जी ने समझाया। हमें नियमित रूप से ध्यानाभ्यास करते रहना चाहिए, चाहे हमें लगे कि हम अंतर में तरक्की नहीं कर रहे हैं। हमें लगातार धैर्य के साथ, हर दिन, प्रयास करते रहना चाहिए, तथा अपने आसपास शांति का वातावरण बनाए रखना चाहिए, ताकि हम मन की चालों में फँसने से बच जायें। जब हम अपने भीतर प्रभु के प्रेम के साथ जुड़ जाते हैं, तो हम इतनी अधिक शांति का अनुभव करते हैं जो बाहरी दुनिया की कोई भी ताकत भंग नहीं कर पाती है। संत राजिन्दर सिंह जी ने फ़र्माया कि हम सबको इसी अवस्था में पहुँचना है ताकि हम अपने जीवन के परम उद्देश्य को पूरा कर सकें। प्रभु को पाने की इच्छा इंसान के अंदर प्रभु द्वारा ही पैदा की गई थी, और यह फलीभूत अवश्य होगी, महाराज जी ने फ़र्माया। प्रभु को पाने की इच्छा इंसान के अंदर प्रभु द्वारा ही पैदा की गई थी, और यह फलीभूत अवश्य होगी। हमें केवल प्रयास करते रहना है, तथा प्रभु की ओर जाने वाली दिशा में कदम उठाते हुए धैर्यवान और सहनशील बने रहना है।