रोशनी में जीना

आज, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने बताया कि हमारे आसपास घिरे अंधेरों के बावजूद, हम रोशनी में जीना सीख सकते हैं। प्रभु ने हमें इस मानव चोले की बरकत दी है। इस मानव चोले में हमें वो सभी पदार्थ दिए गए हैं जो इस जीवन के लक्ष्य – अपनी आत्मा को जानना और परमात्मा को पाना – को पूरा करने के लिए हमें चाहियें, ताकि आत्मा आख़िरकार परमात्मा में लीन हो जाए – वो महासागर जिसमें से ये उत्पन्न हुई है।
प्रभु चाहते हैं कि इस जीवन में जीते हुए हम प्रभु से प्रेम करें और प्रभु से बनाई सृष्टि से प्रेम करें – हम प्रभु को सभी जीवों में देखें। प्रभु चाहते हैं कि हम प्रेम का मार्ग अपनायें और धरती पर मिले समय का सदुपयोग करें। लेकिन इंसानी दशा ऐसी है कि हम इस माया के संसार को ही असली समझते रहते हैं। विचारों, इच्छाओं, और महत्त्वकांक्षाओं के द्वारा हम सांसारिक दौलत, प्रसिद्धि, और उपलब्धियों में ही उलझे रहते हैं। इस प्रक्रिया में हम स्वयं को मिला अनमोल समय फ़िजूल में ही गँवा देते हैं, तथा अपने असली लक्ष्य को भुला बैठते हैं।
मन द्वारा पैदा किए गए व्यवधानों के बावजूद, हमें मन का गुलाम नहीं बन जाना चाहिए। जीवन की चुनौतियों और बदलते हुए हालातों द्वारा लाए गए अंधेरों के बावजूद, हम रोशनी में जीना सीख सकते हैं। यह तब संभव होता है जब हमारा ध्यान केवल प्रभु की ओर एकाग्र होता है, महाराज जी ने समझाया। जब हम प्रभु की मीठी याद में अपने दिन भर के काम करते हैं, तो हम प्रभु के प्रेम में दृढ़ता से बँध जाते हैं और समस्त सांसारिक प्रलोभनों से बचे रहते हैं। जब हम अपने अंतर में प्रभु के प्रेम व प्रकाश का अनुभव कर लेते हैं, तो हम बाहरी संसार के अंधकार से बच जाते हैं। तब हम लगातार रोशनी में जीना सीख जाते हैं। ऐसा ही जीवन प्रभु हमारे लिए चाहते हैं, और ऐसा तब होता है जब हम प्रेम के मार्ग पर चलते हैं और हमेशा प्रभु की ओर ध्यान एकाग्र किए रहते हैं।