ध्यानाभ्यास के द्वारा अपने सच्चे स्वरूप के प्रति जाग उठें

आज, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने हमारे अस्तित्व के आध्यात्मिक पहलू के बारे में तथा इस मानव चोले में जीते हुए ही अपनी आत्मा का अनुभव करने के महत्त्व के बारे में बताया। दिन भर हम विभिन्न गतिविधियों में व्यस्त रहते हैं, जो हमारा ध्यान इस भौतिक संसार में लगाए रखती हैं। अपनी इंद्रियों के स्तर पर जीते हुए हम शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक स्तरों पर ही खुशियाँ ढूंढते रहते हैं, क्योंकि हम यही जानते हैं। लेकिन हम इसके अलावा भी बहुत कुछ हैं, और यह सच्चाई तब सामने आती है जब हम किसी की मौत देखते हैं। मृत्यु के समय शरीर में कोई बदलाव नहीं होता है, लेकिन फिर भी वो इंसान चला जाता है। शरीर को जान देने वाली ताकत, शरीर से निकल जाती है। यह ताकत है हमारी आत्मा, जोकि परमात्मा का अंश है।
संत-महापुरुष इस संसार में हमें याद दिलाने के लिए आते हैं कि यह मानव चोला एक अवसर है जिसमें हम अपने अस्तित्व की सच्चाई को जान सकते हैं – कि हम आत्मा हैं, तथा हम जीते-जी ही आत्मा व परमात्मा का अनुभव कर सकते हैं। ऐसा तब होता है जब हम ध्यानाभ्यास की प्रक्रिया द्वारा आंतरिक रूहानी मंडलों में जाते हैं। ध्यानाभ्यास के द्वारा हम प्रभु की दिव्य ज्योति व श्रुति के साथ जुड़ जाते हैं और अपने आत्मिक स्वरूप का अनुभव कर पाते हैं। हम दिव्य प्रेम से भरपूर हो जाते हैं, जो हमारे रोम-रोम को परमानंद से भर देता है। धीरे-धीरे हम प्रभु की बनाई समस्त सृष्टि के साथ अपने संबंध के प्रति जागृत हो उठते हैं, तथा हमारे अंदर स्वाभाविक रूप से सबके लिए प्रेम व सेवा का भाव उपजने लगता है। हम प्रभु के साथ अपनी नज़दीकी का अनुभव करने लगते हैं, और प्रभु के द्वारा हम समस्त सृष्टि के साथ अपनी नज़दीकी का अनुभव करने लगते हैं। आंतरिक मंडलों का प्रेम हमें तृप्त कर देता है और हमें परिपूर्ण कर देता है। इस आत्मिक परिपूर्णता के साथ ही हमें शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक स्तरों पर भी परिपूर्णता हासिल हो जाती है।