जियो और जीने दो

आज संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने समझाया कि हम बाहरी परिस्थितियों के बावजूद शांत व खुश कैसे रह सकते हैं। अपने रोज़मर्रा के जीवन में हम अनेक लोगों से मिलते-जुलते हैं। अक्सर चीज़ों के बारे में अलग-अलग राय होने के कारण हमारी उनके साथ बहस या गलतफ़हमियाँ हो जाती हैं, जिससे हमारे ऊपर नकारात्मक असर पड़ता है और हमारे जीवन में क्रोध व हलचल पैदा हो जाती है। जब हम ऐसी तनावपूर्ण स्थिति में होते हैं, तो हम आसानी से दूसरों को दोष देने लगते हैं और सोचते हैं कि वे ही हमारी तकलीफ़ व तनाव का कारण हैं। जब हम अपने जीवन की ओर गहराई से देखते हैं, तो हम पाते हैं कि दूसरे लोग हमारी तकलीफ़ों का कारण नहीं हैं, बल्कि हम ख़ुद ही अपनी तकलीफ़ों का सबसे बड़ा कारण हैं। ये दूसरे लोग नहीं हैं जो हमारे जीवन में खुशियाँ आने से रोकते हैं, बल्कि हम स्वयं ही ऐसा करते हैं। जो कुंठा और क्रोध हम महसूस करते हैं, वो हमारे अंदर ही पैदा होते हैं, और वो तब बाहर निकल आते हैं जब दूसरे लोग हमारी अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते हैं।
महाराज जी ने फ़र्माया कि इस तकलीफ़ का इलाज है सही समझ का विकास करना और दूसरों में कमियाँ ढूंढने के बजाय अपनी ख़ुद की गलतियों और कार्यों की ओर ध्यान देना। हमें यह बात समझनी चाहिए कि दुनिया में कोई भी दो लोग एक जैसे नहीं होते हैं। अलग-अलग तरीके का पालन-पोषण और पृष्ठभूमि होने के कारण हम सब स्वाभाविक रूप से एक-दूसरे से अलग होते हैं, तथा हरेक व्यक्ति की परिस्थिति अलग-अलग होने के कारण हम में से हरेक का दृष्टिकोण सही हो सकता है। एक मन्ज़िल तक पहुँचने के कई रास्ते हो सकते हैं, और हम में से हरेक वो रास्ता चुनता है जो उसके लिए सही होता है। इसीलिए, आपसी सौहार्द को बनाए रखने के लिए हमें ‘जियो और जीने दो’ के सिद्धांत का पालन करना चाहिए। हमें अपनी कमियों की ओर ध्यान देना चाहिए और ख़ुद में सुधार लाने की कोशिश करनी चाहिए। हम सब यहाँ प्रभु को जानने के लिए आए हैं। जिस तरह दौड़ में जीतने के लिए घोड़े की आँखों के पास ब्लाइन्डर्स लगा दिए जाते हैं ताकि उसका ध्यान सिर्फ़ अपने लक्ष्य की ओर केंद्रित रहे, उसी तरह हमें भी ख़ुद पर ब्लाइन्डर्स लगा लेने चाहियें और अपनी रूहानी तरक्की की ओर ध्यान देना चाहिए, तथा दूसरों के मामलों में दखल देने की आदत से बचना चाहिए।