ध्यानाभ्यास के द्वारा प्रभु को पहचानें

अगस्त 15, 2021

आज वैश्विक संगत को सम्बोधित करते हुए, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने समझाया कि हम कैसे प्रभु के प्रेम का अनुभव कर सकते हैं। प्रभु, जो सबसे बड़े दाता हैं, ने हमें बहुत सारी देनें बख़्शी हैं, महाराज जी ने फ़र्माया, और उनमें से सबसे बड़ी देन है यह मानव चोला। इस मानव चोले में ही हमारी आत्मा स्वयं को जान सकती है और अपने सच्चे घर वापस जाने के मार्ग पर चल सकती है।

लेकिन, इस उद्देश्य से अनजान रहते हुए कि हमें यह मानव चोला क्यों दिया गया है, हम प्रभु की भौतिक देनों में उलझकर ही जीवन गुज़ार देते हैं, और दाता को तो भुलाए ही रहते हैं। लेकिन यह सच है कि हम चाहे प्रभु को याद करते हों या नहीं, हम चाहे प्रभु में विश्वास रखते हों या नहीं, हम चाहे प्रभु से प्रेम करते हों या नहीं, प्रभु हमारे जीवन के हर क्षण में हमारी देखभाल कर रहे हैं।

हम इस सच्चाई को केवल तभी समझ पाते हैं जब हम अपने असली अस्तित्व का और प्रभु के साथ अपने संबंध का अनुभव कर लेते हैं। ऐसा तब होता है जब हम ध्यानाभ्यास के द्वारा अपने ध्यान को बाहरी संसार से हटाकर आंतरिक रूहानी मंडलों की सच्चाई पर केंद्रित करते हैं। जब हम आत्मिक रूप से जागृत हो जाते हैं, तो हम अपने जीवन में प्रभु की उपस्थिति महसूस करने लगते हैं। हम जान जाते हैं कि प्रभु ही दाता हैं। हम देखने लगते हैं कि जीवन में जो कुछ भी होता है, वो प्रभु की रज़ा से ही होता है। अपने प्रति प्रभु के अपार प्रेम का अनुभव कर लेने से, प्रभु में हमारा विश्वास और भरोसा बढ़ता चला जाता है। यह प्रेम हमें प्रभु की नज़दीकी पाने के लिए प्रेरित करता है और हम जीवन के उद्देश्य को पाने के लिए कदम उठाने लगते हैं।

अगर हमें प्रभु की सबसे बड़ी देन, यानी कि इस मानव चोले, से सर्वोत्तम लाभ उठाना है, तो हमें पहले प्रभु का अनुभव करना होगा, और ऐसा तब होता है जब हम ध्यानाभ्यास के द्वारा अंतर में जाते हैं।