धन्यवाद, प्रभु

इंसानी जीवन एक बहुमूल्य उपहार है। यह हमें प्रभु के द्वारा दिया गया अवसर है जिसमें हम अपने सच्चे स्वरूप को जान सकते हैं और अपने स्रोत, प्रभु, के पास वापस पहुँच सकते हैं। केवल इस इंसानी चोले में ही वो सभी पदार्थ दिए गए हैं जो प्रभु को पाने के लिए आवश्यक हैं। इसी वजह से मानव चोले का सम्पूर्ण सृष्टि का उच्चतम चोला कहा जाता है। प्रभु-प्राप्ति के मार्ग पर चलने वाले यात्री जानते हैं कि नैतिक जीवन जीने से उनकी आध्यात्मिक यात्रा में तरक्की करने में मदद होती है। आज संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने उस एक सद्गुण के बारे में बताया जो प्रभु के पास वापस जाने वाले मार्ग में हमारी बहुत सहायता करता है।
अच्छा इंसान बनने के लिए सच्चाई, अहिंसा, सबसे प्रेम, और निष्काम सेवा के सद्गुण बहुत आवश्यक हैं। लेकिन शीघ्र आध्यात्मिक तरक्की करने के लिए शुक्राने का सद्गुण अति आवश्यक है। हमें शुक्राने का जीवन जीना सीखना चाहिए जिसमें हम अपने जीवन की हरेक बात और घटना के लिए प्रभु के आभारी हों, महाराज जी ने फ़र्माया। जीवन का पेन्डुलम सुख और दुख के क्षणों के बीच झूलता रहता है, और ये दोनों ही अस्थाई हैं। हमें जीवन के उतार-चढ़ाव के बीच भी शुक्राने में रहना सीखना होगा, और यह जानना होगा कि सभी मंडलों में जो कुछ भी हो रहा है, वो प्रभु की रज़ा में ही हो रहा है।
उदास और निराश होने के बजाय हमें प्रभु की रज़ा में राज़ी रहना सीखना चाहिए, और जीवन के बदलते हालातों से गुज़रते हुए भी संतुलन व ठहराव में रहना चाहिए। जैसे-जैसे हम अधिक शुक्राने में जियेंगे, हम अधिक शांत होते जायेंगे, जिससे ध्यानाभ्यास के दौरान शरीर व मन को शांत करने में हमें मदद मिलेगी। ध्यानाभ्यास के द्वारा हम प्रभु के प्रेम व प्रकाश का अनुभव कर सकते हैं। इस प्रकाश के साथ जुड़ने से प्रभु के साथ हमारा रिश्ता मज़बूत होता जाता है, और हम प्रभु के अधिक से अधिक नज़दीक पहुँचते जाते हैं।