ध्यानाभ्यास के द्वारा आंतरिक शांति पर केंद्रित रहें

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

बाहरी संसार हर समय हमारे मस्तिष्क और इंद्रियों को कोई न कोई जानकारी और सूचना भेजता रहता है। हमारे आसपास के वातावरण से संदेश लगातार हमारे मस्तिष्क में जाते रहते हैं, जो फिर इन संदेशों पर कार्य करता है। बाहरी दुनिया की कभी न रुकने वाली प्रतियोगिता हर समय हमारे ध्यान को अपनी ओर खींचे रहती है। ऐसे में, शांति प्राप्त करने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

और तब क्या अगर हमारे मस्तिष्क को रोज़ाना मिलने वाली जानकारी ऐसी चीज़ों से भरपूर हो जो हमें परेशान कर दें, तनाव में ले आयें, या फिर भयभीत कर दें?

ख़ुशख़बरी यह है कि हमारे पास यह चुनाव करने की आज़ादी है कि हम अपना ध्यान किस ओर लगायें। हम ख़ुद तय कर सकते हैं कि हमें अपना ध्यान नकारात्मक चीज़ों की ओर लगाना है या सकारात्मक चीज़ों की ओर। हमारे पास यह निर्णय लेने की स्वेच्छा है कि हम किस प्रकार की जानकारी को अपने अंदर ग्रहण करना चाहते हैं।

हमारे भीतर मौजूद शांति-स्थल

एक उपाय यह है कि हम अपने भीतर पहले से ही मौजूद शांति के साथ ख़ुद को जोड़ लें। हम सभी के अंदर, हर समय, शांति से भरपूर एक स्थान मौजूद है। यह स्थान बाहरी संसार की समस्याओं और संघर्षों से मुक्त है। यह हमारे अंदर की गहन चुप्पी व स्थिरता में मौजूद परम शांति के एक महासागर की तरह है। ध्यानाभ्यास के द्वारा हम जब चाहे इस आरोग्यकारी जल में डुबकी लगा सकते हैं।

ध्यानाभ्यास के द्वारा हम रोज़ाना कुछ समय अपने ध्यान को बाहरी संसार की उलझनों से हटाकर, थोड़ी देर के लिए इस शांति के महासागर में तैर सकते हैं। तब हम परम सुख, ख़ुशी, व परमानंद से भरपूर क्षणों का अनुभव कर सकते हैं।

ध्यानाभ्यास के द्वारा आंतरिक शांति के संपर्क में आना


जहाँ एक ओर हम संतुलित जीवन जीने के लिए बाहरी संसार की गतिविधियों की जानकारी रख सकते हैं और इसे एक बेहतर स्थान बनाने के लिए अपनी ओर से पूरा योगदान भी दे सकते हैं, वहीं दूसरी ओर ध्यानाभ्यास के द्वारा हम अपने भीतर मौजूद शांति के संपर्क में भी आ सकते हैं। इस तरह हम अपने अस्तित्व को ख़ुशी व परमानंद से भरपूर कर सकते हैं।

जब हम स्वयं अपनी आंतरिक शांति के साथ जुड़ जाते हैं, तो हम उस शांति को दूसरों तक भी प्रसारित करने लगते हैं और इस प्रकार बाहरी संसार में शांति लाने में अपना योगदान देते हैं।

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आध्यात्मिक वसंत की साफ़-सफ़ाई

जब हम अपने विचारों को साफ़ करने की ओर ध्यान देते हैं, तो हमें देखना होता है कि हम अपने कौन-कौन से पहलुओं की सफ़ाई करना चाहते हैं। हमें यह समझना होता है कि हमारे मन और हृदय में कौन-कौन सी चीज़ें ग़ैर-ज़रूरी हैं और हमें प्रभु के प्रेम को अनुभव करने से रोक रही हैं।

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ख़ुशी एक मानसिक अवस्था है

अगली बार जब हम सोचें कि हालात बहुत ख़राब हैं और प्रभु हमारी सुन नहीं रहे हैं, तो हमें बैठकर गहरी साँस लेनी चाहिए और दिमाग़ को आराम देना चाहिए। हमें प्रभु को मौका देना चाहिए कि वो चीज़ों को होने दें, और हमें धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करनी चाहिए। जब सब कुछ हो चुकेगा, तो हम देखेंगे कि अंत में प्रभु द्वारा की गई चीज़ें हमारे लिए ठीक ही निकली हैं।

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अपना उपचार करना और विश्व का उपचार करना

मैं आपके सामने एक ऐसा समाधान रखना चाहता हूँ जो परिणाम अवश्य देगा – हम में से हरेक अपना उपचार करे। यदि हम ध्यानाभ्यास के द्वारा अपने शरीर, मन, और आत्मा का उपचार कर सकें, तो हम विश्व की जनसंख्या में एक और परिपूर्ण इंसान जोड़ पायेंगे।

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क्रोध पर काबू पाना

हमारे मन की शांति को सबसे बड़ा ख़तरा क्रोध से होता है। कार्यस्थल पर, हम पाते हैं कि हमें अक्सर अपने बॉस, अपने सहकर्मियों, या अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर गुस्सा आता रहता है। मुश्किल से ऐसा एक भी दिन गुज़रता होगा जब कार्यस्थल पर कोई व्यक्ति या कोई चीज़ हमारे मन की शांति को भंग नहीं करती है। हम देखते हैं कि घर में भी हमारी प्रतिक्रियाएँ अक्सर क्रोधपूर्ण होती हैं।

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ध्यानाभ्यास के द्वारा क्रोध और तनाव पर काबू कैसे पायें

क्रोध और तनाव आज हमारे जीवन के नाटक में अनचाहे किरदारों की तरह जगह बना चुके हैं। यहाँ कुछ व्यवहारिक तरीके दिए गए हैं जिनका इस्तेमाल कर हम इन पर काबू पा सकते हैं।

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