ध्यानाभ्यास के द्वारा थैंक्सगिविंग मनायें

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

22 नवम्बर 2018

मैं आप सभी को थैंक्सगिविंग डे (धन्यवाद दिवस) की बधाई देता हूँ। थैंक्सगिविंग का समय कृतज्ञता का समय है। यह हमें मिली सभी देनों और उपहारों के लिए धन्यवाद देने का समय है। तो प्रभु द्वारा हमें दी जाने वाली अनगिनत देनों के लिए हम कृतज्ञता कैसे दर्शा सकते हैं? प्रभु को शुक्राना करने का एक तरीका है ध्यानाभ्यास करना। क्यों?

ध्यानाभ्यास वो समय है जब हम शांत अवस्था में बैठकर अपने अंतर में प्रभु के साथ जुड़ते हैं। आंतरिक संपर्क के इन क्षणों में हम प्रभु की देनों के लिए, दिल से उनका शुक्रिया अदा कर सकते हैं।

हालाँकि साल भर हम उन सब चीज़ों पर ध्यान देते रहते हैं जो हमें नहीं मिली हैं, फिर भी थैंक्सगिविंग के समय हमें अपने जीवन में मिली अच्छी चीज़ों की ओर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। हमें कृतज्ञ होना चाहिए कि हमें यह इंसानी चोला मिला है, जिसमें हम ख़ुद को जान सकते हैं और प्रभु को पा सकते हैं। जीवन भर हमें कई शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक उपहार प्राप्त हुए हैं। यदि हम अपने जीवन की सभी अच्छी चीज़ों की सूची बनायें, तो हम देखेंगे कि हमारे पास शुक्राना महसूस करने के लिए बहुत सी चीज़ें हैं।

इस थैंक्सगिविंग त्यौहार पर, हमें कुछ समय ध्यानाभ्यास में भी बिताना चाहिए, अंतर में प्रभु के साथ जुड़ना चाहिए, और इस तरह खुद को मिली देनों के लिए प्रभु का शुक्राना अदा करना चाहिए।

अतिरिक्त संदेश

समस्त जीवन की एकता

समस्त जीवन की एकता

सच्चा आध्यात्मिक विकास तब होता है जब हम जान जाते हैं कि हम सब एक हैं। यह एहसास हो जाने से हम ख़ुद को दूसरों से ऊँचा या बेहतर समझना बंद कर देते हैं। हम ऐसी अवस्था में पहुँच जाते हैं जिसमें हम जान जाते हैं कि हम सब महत्त्वपूर्ण हैं।

प्रभु में विश्वास

प्रभु में विश्वास

प्रभु के अदृश्य हाथ की सुंदरता यह है कि कई बार हम सहायता के लिए बहुत अधिक प्रार्थनाएँ करते हैं और हमें वो मिलती भी है। लेकिन कई बार जब हम सहायता माँगते नहीं हैं, तब भी हमें सहायता मिलती है।

ध्यानाभ्यास एक प्रयासरहित प्रयास है

ध्यानाभ्यास एक प्रयासरहित प्रयास है

जब हम ध्यानाभ्यास करते हैं, तो हमें प्रभु से प्रार्थना करनी चाहिए कि वे हमें वो दें और वो दिखायें जो वे हमारे लिए बेहतर समझते हैं। हमें प्रेम के साथ बैठना चाहिए, जैसे हम एक खाली प्याला हों, ताकि प्रभु हम में अपना दिव्य अमृत उड़ेल सकें।