अपनी आपसी संबंद्धता को पहचानें
संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
आगे दिया गया अभ्यास एक उदाहरण है जिसके द्वारा हम समस्त जीवन के साथ अपनी संबंद्धता को, अपने अंदरूनी नाते को, समझ सकते हैं। एक पानी की बूंद की कल्पना कीजिए। मान लीजिए कि उस बूंद के पास से एक नदी गुज़र रही है। पानी की वो बूंद अपने आप ही नदी की तरफ़ खिंची चली जाती है और उसमें मिल जाती है। वो नदी फिर जाकर सागर में मिल जाती है, जिस तरह हमारी आत्मा इस जीवन रूपी महासागर में मिली हुई है।
संतों-महापुरुषों ने आत्मा के एक अनंत महासागर में लीन हो जाने के बारे में बताया है। क्योंकि हमारी दुनियावी भाषा ऐसे किसी भी अनुभव का वर्णन करने में असमर्थ है जो बुद्धि के परे हो, इसीलिए हमें उदाहरणों और उपमाओं की मदद लेनी पड़ती है। इसीलिए, आम तौर पर, एक बूंद के सागर में लीन होने या रोशनी की किरण के सूरज में लीन होने का उदाहरण दिया जाता है। मकसद यह समझाना होता है कि जहाँ पहले दो थे, वो अब मिलकर एक हो गए हैं।
प्रभु से मिलन का पहला कदम है अपनी आत्मा का अनुभव करना। हमें अपने शरीर और मन के साथ जुड़ने के बजाय, स्वयं को आत्मा के रूप में अनुभव करना चाहिए। अपनी आत्मा का अनुभव करने पर ही, हम अपना ध्यान बाहरी दुनिया के प्रवेशद्वार से हटाकर, उस प्रवेशद्वार पर टिका सकते हैं जो हमें अंदरूनी रूहानी मंडलों में ले जाता है। तब हमारी आत्मा इन रूहानी मंडलों में से यात्रा करती हुई, प्रभु के पास पहुँचकर उनमें लीन हो जाती है।
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प्रभु की बनाई सृष्टि की सेवा
कई लोग केवल प्रभु की ही सेवा करना चाहते हैं। हम यह नहीं जानते कि प्रभु की बनाई सृष्टि की सेवा करना प्रभु की सेवा करना ही है। हर दिन जीवन में हमें दूसरों की मदद करने के अनेक मौके मिलते हैं।
कम इस्तेमाल होने वाली राह चुनें
हमारी दौलत, हमारा करियर, हमारा सांसारिक ज्ञान, हमारे रिश्ते, हमारी कला, सब कुछ पीछे रह जाता है जब हमारा भौतिक शरीर ख़त्म हो जाता है। तो फिर हम कौन सी ऐसी राह पर चल सकते हैं जो अनंत है, जो हमारे शरीर की समाप्ति के बाद भी बनी रहती है, और जो हमें प्रभु की ओर ले जाती है? इसका जवाब है अध्यात्म। सार्वभौमिक प्रेम की राह हमें प्रभु की ओर ले जाती है, जहाँ हम वो प्रेम पा लेते हैं जो सदा-सदा के लिए कायम रहता है।
बास्केटबॉल कौशल को ध्यानाभ्यास में इस्तेमाल करना
ध्यानाभ्यास के लिए एकाग्रता की ज़रूरत होती है। इसका अर्थ है अपने शरीर को बिल्कुल स्थिर करके बैठना, जिस तरह खिलाड़ी अपने शरीर को उस स्थिति में रखते हैं जिसमें वो बॉल को पकड़ सकें। हमें भी आंतरिक बॉल के साथ जुड़ना है, इसीलिए हमारे शरीर का स्थिर होना ज़रूरी है।
हमेशा अपनी ओर से बेहतर से बेहतर करिए
जीवन में ऐसा समय भी आता है जब अपनी ओर से बेहतरीन प्रयास करने पर भी हम परिणाम से संतुष्ट नहीं होते, या जब हमारे प्रयास उन लोगों के द्वारा ही सराहे नहीं जाते जिनकी हम सहायता करने की कोशिश कर रहे होते हैं। जब ऐसा होता है, तो हम अपने प्रयासों में सतर्क हो जाते हैं, और परिस्थितियों या लोगों के अनुसार अपने प्रयासों में बढ़ोतरी या कमी लाते रहते हैं।
लगावों को त्यागना
एक रोचक कहानी की मदद से हम जान पाते हैं कि कैसे हम अपनी इच्छाओं और दैनिक गतिविधियों के गुलाम बन जाते हैं, और इस प्रक्रिया में अपने जीवन के सच्चे उद्देश्य को पाने के लिए समय ही नहीं निकाल पाते।
सभी चीज़ों में कुछ न कुछ अच्छा ढूंढ लीजिए
हम अक्सर एक आधे-भरे गिलास को आधा-भरा हुआ नहीं, बल्कि आधा-खाली की नज़र से देखते हैं। किसी भी स्थिति को देखते समय, ज़्यादातर लोग उसके अच्छे पहलू के बजाय उसके बुरे पहलू की ओर ही देखते हैं। लेकिन, यदि हम इस बारे में ध्यान से सोचें, तो देखेंगे कि हमारे जीवन में बहुत सारी अच्छी चीज़ें भी हो रही हैं, और हमारे पास ऐसी कई देनें हैं जिनके लिए हमें शुक्रगुज़ार होना चाहिए।