ध्यानाभ्यास में नियमितता

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

9 जून 2020

जब हम रोज़ाना ध्यानाभ्यास करते हैं, तो हम इसमें निपुण होते जाते हैं और अंततः इच्छित परिणामों को पा लेते हैं। कई बार, हम दिन-ब-दिन बैठते तो ज़रूर हैं, लेकिन हमें लगता है कि हम तरक्की नहीं कर रहे हैं। लेकिन धरती में बोए गए बीज कई बार कई हफ़्तों तक डंठल नहीं दिखाते हैं।

चाहे हमें जल्द ही नतीजे देखने को न मिलें, लेकिन हमें बीजों को लगातार पानी देते रहना पड़ता है। निरंतरता और नियमितता हमारे आध्यात्मिक विकास के लिए बेहद ज़रूरी हैं। हमें ध्यानाभ्यास में रोज़ाना समय अवश्य देना चाहिए, चाहे परिणाम जो भी हों। नीचे दी गई कहानी इस बिंदु को अच्छी तरह से दर्शाती है।

ऐसप्स फ़ेबल की एक कथा है, एक कौअे के बारे में। वो वीरानों में भटक रहा था और उसे प्यास लग गई। उसने कई दिनों से कुछ भी नहीं पिया था। आख़िरकार उसे एक घड़ा मिला जिसमें बिल्कुल नीचे, तली में थोड़ा सा पानी था। कौअे ने अपनी चोंच घड़े में डाली और पानी पीने की कोशिश की, लेकिन उसकी चोंच नीचे तक पहुँची नहीं। उसको समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। उसे लग रहा था कि वो पानी नहीं पी पाएगा।

फिर उसे एक उपाय सूझा। उसने घड़े में एक-एक करके छोटे-छोटे कंकड़ डालना शुरू कर दिया। जैसे ही एक कंकड़ घड़े में जाता था, तो तली में मौजूद पानी थोड़ा ऊपर उठ जाता था। एक-एक करके वो बहुत सारे कंकड़ घड़े के अंदर डालता गया। थोड़ी देर तक तो यही लगता रहा कि ऐसा करना फ़िजूल है क्योंकि वो अभी भी पानी तक नहीं पहुँच पा रहा था। लेकिन काफ़ी सारे कंकड़ डालने के बाद पानी इतना ऊपर आ गया कि कौआ उसे पीकर अपनी प्यास बुझा पाया।

यह स्थिति ध्यानाभ्यास में बिताए गए समय के समान ही है। हो सकता है कि हमें लगे कि हर घंटा फ़िजूल ही जा रहा है और हम कोई तरक्की नहीं कर रहे हैं। लेकिन हमें शुरुआती अवस्थाओं में परिणाम देखने को नहीं मिलते हैं। आख़िरकार, सही तरीके से ध्यानाभ्यास करने में बिताए गए कई घंटे जुड़कर अचानक ही हमारे सामने इच्छित परिणाम ले आते हैं और हम अंतर में तेज़ी से तरक्की करने लगते हैं।

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लेखक के बारे में

Sant Rajinder Singh Ji sos.org

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज को अध्यात्म व ध्यानाभ्यास के द्वारा आंतरिक व बाहरी शांति का प्रसार करने के अपने अथक प्रयासों के लिए अंतर्राष्ट्रीय रूप से सम्मानित किया गया है। साइंस ऑफ़ स्पिरिच्युएलिटी के आध्यात्मिक अध्यक्ष होने के नाते, वे संसार भर में यात्राएँ कर लोगों को आंतरिक ज्योति व श्रुति पर ध्यान टिकाने की प्रक्रिया सिखाते हैं, जिससे शांति, ख़ुशी, और आनंद की प्राप्ति होती है।

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने ध्यानाभ्यास की अपनी प्रभावशाली और सरल विधि को सत्संगों, सम्मेलनों, आध्यात्मिक कार्यक्रमों, और मीडिया प्लैटफ़ॉर्म्स के द्वारा विश्व भर में लाखों लोगों तक पहुँचाया है। महाराज जी अनेक बैस्टसैलिंग पुस्तकों के लेखक भी हैं, तथा उनके ब्लॉग्स, वीडियोज़, गतिविधियों की सूचनाएँ, और प्रेरणादायी आध्यात्मिक कथन नियमित रूप से साइंस ऑफ़ स्पिरिच्युएलिटी के वेबसाइट पर आते रहते हैं: www.sos.org। अधिक जानकारी के लिए और आगामी सार्वजनिक कार्यक्रमों के लिए यहाँ देखें। Facebook YouTube Instagram पर संत राजिन्दर सिंह जी महाराज को फ़ॉलो करें।

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संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने ध्यानाभ्यास की अपनी प्रभावशाली और सरल विधि को सत्संगों, सम्मेलनों, आध्यात्मिक कार्यक्रमों, और मीडिया प्लैटफ़ॉर्म्स के द्वारा विश्व भर में लाखों लोगों तक पहुँचाया है। महाराज जी अनेक बैस्टसैलिंग पुस्तकों के लेखक भी हैं, तथा उनके ब्लॉग्स, वीडियोज़, गतिविधियों की सूचनाएँ, और प्रेरणादायी आध्यात्मिक कथन नियमित रूप से साइंस ऑफ़ स्पिरिच्युएलिटी के वेबसाइट पर आते रहते हैं: www.sos.org। अधिक जानकारी के लिए और आगामी सार्वजनिक कार्यक्रमों के लिए यहाँ देखें। Facebook YouTube Instagram पर संत राजिन्दर सिंह जी महाराज को फ़ॉलो करें।

 

 

अतिरिक्त संदेश

फ़ादर्स डे

फ़ादर्स डे

जब हम इस दिन अपने पिता को सम्मानित करने के बारे में सोचते हैं, तो हमें अपने सार्वभौमिक पिता और माता, यानी प्रभु, को सम्मानित करने के बारे में भी सोचना चाहिए, जिन्होंने हमारे शारीरिक पिता को बनाया है। ऐसा करने का सबसे अच्छा तरीका है उनके द्वारा दिए उपहारों को याद करना और उनके लिए शुक्राना अदा करना।

मदर्स डे

मदर्स डे

आइए हम आज के दिन, और हर दिन, उनके प्रेम के उपहार की क़द्र करें, इस बात को महसूस करें कि हमारी माँओं के दिलों में हमारे लिए कितना सारा प्रेम है, और हमने उस प्रेम से कितना कुछ पाया है। आइए हम उन्हें भी याद करें जिन्होंने सब माँओं को बनाया है, यानी प्रभु को, और आइए हमारी माँ का प्रेम हमें उस प्रेम की याद दिलाए जो प्रभु के अंदर हमारे लिए है।

प्रभु-प्रेम का महासागर

प्रभु-प्रेम का महासागर

जब हम प्रभु के शुद्ध़, शीशे की तरह साफ़, महासागर में तैरते हैं, तो हम अपने सच्चे अस्तित्व या आत्मा का प्रतिबिंब देख पाते हैं। उसे धुंधला करने के लिए कोई मिट्टी या गंदगी नहीं होती है। हम महासागर की गहराई में देख पाते हैं, और कोई भी चीज़ हमारे ध्यान को उस पानी की शांति की ओर से नहीं हटा पाती।